Wednesday, August 29, 2012

मन का स्वभाव

"मन एव मनुष्यानाम् कारण बन्ध मोक्षयो"..मनुष्यों के बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण मन ही है। हम समझ चुके हैं कि ध्यान एक मानसिक क्रिया है, तो मन के स्वभाव को समझ लेना ज़रूरी है। जरूरी इस लिए भी है, कि मन के स्वभाव के बारे में कुछ भ्रम प्रचलित हैं। यह कि मन का स्वभाव चंचल है। यहाँ से वहाँ भागते रहना इसका स्वभाव है, आदि। वास्तविकता इनसे उल्टी है। वास्तविकता तो यह है कि शांत और स्थिर रहना है मन का स्वभाव। तभी तो हमारा मन शांति की तलाश में भटकता है। मूल बात यह है कि "आनंद की खोज" है, मन का वास्तविक स्वभाव। चंचलता और निरंतर यहाँ से वहाँ भागते रहना उसके इसी स्वभाव का परिणाम है और आनंद की खोज मन का स्वभाव इसलिए है कि आनंद का ही परिणाम है आदमी का अस्तित्व।
ध्यान के सन्दर्भ में, ध्यान एक मानसिक क्रिया है। मन का स्वभाव है आनंद की खोज। हमारे भीतर छिपा है आनंद का असीम और अक्षय स्रोत। तो एक बार मन की यात्रा अगर अंतर्मुखी हो जाए तो फिर आगे सब कुछ अपने-आप ही होता चला जाता है। यही तो  करना है ..बस! अपने मन को उसके स्वभाव में छोड़ देना ....आगे ..."कुछ नहीं करना " ही ध्यान है।
-पवन श्री

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