मन की अंतर्मुखी यात्रा का नाम है ध्यान
हमारी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ, आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा बाहरी संसार की ओर खुलती हैं। मन उनके माध्यम से अपने बाहर की
यात्रा में निरंतर व्यस्त रहता है। बाहरी लौकिक और बिखरे हुए संसार की यात्रा में हमारा मन निरंतर बिखरता ही रहता है। कहते हैं- "यथा दृष्टि तथा
सृष्टि" जैसी हमारी दृष्टि होती है,
वैसी ही यह सृष्टि हमें दिखती है। इसी कारण तो हर व्यक्ति को यह सृष्टि अलग-अलग रूप में दिखती है। निरंतर परिवर्तनशील। हाँ!
लेकिन इसी बिखरी-बिखरी दिखने वाले सृष्टि
की एक अवस्था है। परम शांत, सर्वथा अपरिवर्तनशील, कहीं कोई बिखराव नहीं। हमारी ज्ञानेन्द्रियों के
माध्यम से निरंतर जारी। हमारे मन की
बहिर्मुखी यात्रा ही है हमारे बिखराव और हमारी बेचैनी का कारण।
मन की बहिर्मुखी यात्रा से
अवकाश है ध्यान
मन का स्वभाव है आनंद की खोज। लौकिक सृष्टि के बिखरे हुए विषयों में निहित आनंद की एक सीमा है। आनंद की
जितनी मात्रा जिस वस्तु या विषय में होती है, हमारा मन उतनी ही देर उस विषय या वस्तु पर ठहरता है। फिर दूसरे विषय की खोज में निकल पड़ता है। इस
प्रकार हमारा मन निरंतर भागता रहता है। ...भागता ही रहता है। ...हम कामना करते हैं कि कहीं तो विश्राम मिले इस चंचल मन को। लेकिन कहाँ मिले? कैसे मिले? ...मन की इस निरंतर बहिर्मुखी यात्रा से अवकाश..
कुछ नहीं
करना ही है ध्यान
यह बात सुनने में जितनी आसान
लगती है, करने में उतनी ही कठिन भी लगती
है। लेकिन यह सब लगने वाली बातें हैं। ..सब कुछ वैसा थोड़े ही है,
जैसा लगता है। विडंबना देखिए, कठिनाई तो कुछ करने में होनी चाहिए, कुछ नहीं करने में क्या कठिनाई? लगातार कुछ
न कुछ करते रहने के अभ्यासी हमारे मन को "कुछ नहीं
करना" ही कठिन लगता है। ..हम निरंतर कुछ न कुछ करते ही हैं, यहाँ तक कि विश्राम भी हम
"करते हैं"। "कुछ नहीं" भी हम करते ही हैं। ....लेकिन यहाँ तो कुछ नहीं करना है- "ध्यान" ..है न मज़ेदार
बात?
ध्यानम् देता है हमको यह मज़ेदार अनुभव। हमारे मन को हमारी अपनी ही अंतर्मुखी यात्रा में डाल कर।
ध्यानम् देता है हमको यह मज़ेदार अनुभव। हमारे मन को हमारी अपनी ही अंतर्मुखी यात्रा में डाल कर।
हमारे अपने ही मन कि निरंतर की बहिर्मुखी यात्रा से अवकाश दिला कर, हमारे मन को आनंद के उस असीम और अनंत स्रोत की ओर
मोड़ कर। जिसका अनुभव हमें दैनिक जीवन के
हर छोटे-बड़े कार्यों में बना रहता है।
No comments:
Post a Comment