Sunday, September 09, 2012

संस्कार और विचार

पहले यह बात हो चुकी है कि ध्यान में विचारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। तो, यह भी जानना पड़ेगा कि विचार क्या है? .....एक मंडलाकार चक्र है ....विचार, ..कर्म ...कर्म-फल ...संस्कार ..विचार। मन में विचार आता  है। इस विचार के अनुरूप हम कर्म करते हैं। कर्म के अनुरूप कर्म-फल होता है। इन कर्म-फलों के बनते हैं संस्कार। फिर यही संस्कार होते हैं अगले विचारों के जनक। ...पुनः वही चक्र चल पड़ता है ...विचार, कर्म, कर्म-फल, संस्कार और फिर विचार। हम इसी मंडलाकार चक्र में आजीवन गोल-गोल घूमते रहते हैं।

संस्कार को समझें
हमारी इन्द्रियों द्वारा किए गए कर्म से उत्पन्न कर्म-फल की जो छाप हमारे नाड़ी -तंत्र पर बनती है, वही है संस्कार। ...यही छाप हमारी स्मृति के लिए भी उत्तरदायी होती है। हमारी स्मृति ही तो है हमारे कर्म की प्रेरणा। संदर्भित विमर्श में अभी हम संस्कार को इतना ही समझ कर आगे बढ़ें।

विचार को जानें
"ऊर्जा और प्रज्ञा के व्याघात हैं विचार! ..विचार, कल्पना नहीं हैं।" हम अक्सर ऐसा कहते हैं कि मेरे मन में एक विचार चल रहा है। ठीक कहते हैं हम। सचमुच, विचार चलते हैं ..और विचारों का चलना, विचारों का गतिशील होना, ..विचारों में ऊर्जा की उपस्थिति की सूचना देता है। ...फिर हम अगर ग़ौर से देखेंगे तो यह भी जान लेंगे कि हर विचार की अपनी एक निश्चित दिशा होती है। ..विचारों का दिशा-निर्धारण, विचारों में प्रज्ञा की उपस्थिति का सूचक है। ....अब हम यहाँ तक पहुँच चुके हैं कि "हमारे इन्द्रिय-जन्य संस्कारों से उत्पन्न ऊर्जा और प्रज्ञा के व्याघात हैं विचार।" ...ध्यान के सन्दर्भ में ..ध्यान में शामिल प्रमुख घटकों के बारे में संक्षिप्त और कामचलाऊ विमर्श कर लेने  के बाद, अब हम ध्यान के वर्ग में प्रवेश कर चुके होंगे, ऐसा मुझे लग रहा है।
-पवन श्री

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