ध्यान एक क्रिया है, अवस्था नहीं। सामान्यतया हम ध्यान को अवस्था समझ लेते हैं। हम समझ लेते हैं कि मन की एकाग्रचित अवस्था ध्यान है और निराशा को प्राप्त होते हैं। हम समझ लेते हैं कि ध्यान मन की निर्विचार अवस्था का नाम है और ध्यान में जब विचारों की उथल-पुथल का अनुभव होता है, तो पुनः निराश होते हैं। कहते हैं कि ध्यान नहीं हो पा रहा है; विचार बहुत परेशान कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता तो यह है कि ध्यान में सामान्य अवस्था से भी अधिक विचारों की उथल-पुथल होती है। तो सबसे पहले यह समझ लें कि ध्यान मन की निर्विचार अवस्था का नाम नहीं है। ध्यान तो वह विशिष्ट क्रिया है, जो हमारे मन को विचार बहुलता से विचार न्यूनता और अंततः निर्विचार अवस्था (समाधि ) की ओर ले जाती है।
यह पहली समझदारी है जो ध्यान में रुचि रखने वालों में होनी चाहिए। इसके बाद ध्यान का सन्दर्भ अत्यंत सहज हो जाएगा।
-पवन श्री
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