Monday, August 27, 2012

ध्यानम् - दूसरी बात

ध्यान के सन्दर्भ में पहली बात हमने समझ ली कि, "ध्यान क्रिया है, अवस्था नहीं।" अब दूसरी बात समझने की यह है कि इस क्रिया में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में कौन-कौन शामिल रहता है?
  1. ध्यानी, यानि ध्यान करने वाला- जिसे हम व्यक्तित्व कहते हैं। उसका अधिष्ठान है, अंतःकरण -चतुष्टय। ..अंतःकरण-चतुष्टय- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इन्हीं चार चीज़ों को मिला कर बनता है आदमी का व्यक्तित्व। तो ध्यानी का व्यक्तित्व वह पहली चीज है, जो ध्यान की क्रिया में शामिल होती है। एक बात और यहीं समझ लेने की है कि ध्यान एक मानसिक क्रिया है। ध्यानी का शरीर रहता तो है, लेकिन ध्यान की क्रिया में उसकी प्रत्यक्ष कोई भूमिका नहीं होती। प्रत्यक्ष भूमिका तो मन की ही होती है। अतः अभी हम अन्य तीन; यानि बुद्धि, चित्त और अहंकार के स्वभावों पर चर्चा को कभी आगे के लिए स्थगित रखते हैं। हाँ, मन के स्वभाव पर चर्चा ज़रूरी है। लेकिन पहले यह जान लें कि ध्यानी के व्यक्तित्व के साथ-साथ और क्या-क्या  शामिल रहता है ध्यान की क्रिया में।
  2. विचार- ध्यान में विचारों की भूमिका ज़बरदस्त होती है।
आगे हम मन के स्वभाव और विचारों पर चर्चा करेंगे।
-पवन श्री

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