Wednesday, October 10, 2012

चेतना : Consciousness

चेतना, ....रंग-हीन, गंध-हीन, स्वाद-हीन, रूप -हीन, वह ऊर्जा है; जिसकी उपस्थिति में समस्त भूत-जगत् क्रियाशील होता है और जिसकी अनुपस्थिति से सब कुछ निष्क्रिय हो जाता है। चेतना की उपस्थिति में ही हमारी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ, आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा समस्त भूत-जगत् की सूचनाएँ हम तक पहुँचाने में सक्षम होती हैं और चेतना-शून्य अवस्था में अपनी भौतिक अवस्था में उपस्थित रहते हुए भी कुछ नहीं कर पातीं। समझने के लिए हम बिजली के करंट का उदाहरण ले सकते हैं। जैसे, करंट की उपस्थिति में ही समस्त विद्युत-चालित उपकरण सक्रिय होते हैं और इसकी अनुपस्थिति में किसी काम के नहीं होते, ठीक वही स्थिति चेतना की भी है। जैसे, करंट, बल्ब में पहुँच कर प्रकाश, फ्रिज में पहुँच कर ठंडापन, हीटर में पहुँच कर गर्मी और पंखे में पहुँच कर हवा का रूप ले लेता है, वैसे ही चेतना आँख को देखने, नाक को सूंघने, कान को सुनने, जीभ को स्वाद लेने और त्वचा को स्पर्श की अनुभूति आदि सूचनाएँ ग्रहण कर पाने के लिए सक्षम बनाती है।

चेतना की अवस्थाएँ

आध्यात्म -विज्ञान के अनुसार चेतना की सात अवस्थाएँ होती हैं-
  1. जागृत
  2. स्वप्न 
  3. सुषुप्ति 
  4. तुरीय 
  5. तुरीयातीत 
  6. भगवत्
  7. ब्राह्मी  
आगे हम चेतना की उपर्युक्त सातों अवस्थाओं पर चर्चा करेंगे।
-पवन श्री

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