Thursday, September 27, 2012

ध्यानम : आज का युग-योग

महर्षि पतंजली ने अष्टांग योग का अनुशासन  बताया है-
  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. ध्यान
  7. धारणा
  8. समाधि
सामान्यतया हम योग के इन आठ अंगों को योग के आठ सोपान समझ लेते हैं। इससे बहुत गड़बड़ हो जाती है। अंग सभी एक साथ होते हैं, जबकि सोपान एक के बाद एक। अष्टांग को अष्ट-सोपान मानने पर ऐसा होगा कि योग साधने के लिए हमें क्रमवार एक-एक सोपान को साधना पड़ेगा। ..जैसे पहले यम, फिर नियम, फिर आसन, फिर प्राणायाम, फिर प्रत्याहार, फिर ध्यान, फिर धारणा, तत्पश्चात समाधि। ....अष्टांग मानने पर यह होगा कि इन आठों में से किसी एक को साध कर सम्पूर्ण योग को साधा जा सकता है।

 ध्यान ही है आज का  युग -योग
व्यक्ति सम्पूर्ण सृष्टि और उसके पर्यावरण की एक इकाई है। वह जो कुछ भी करता है, वह पर्यावरण-सापेक्ष होता है। पर्यावरण के प्रभावों को भोगने के लिए व्यक्ति बाध्य है। हम अपने भौतिक शरीर को चाह कर भी पर्यावरण-निरपेक्ष नहीं बना सकते। ..हाँ, अपने मन को कुछ विशेष प्रकार के अभ्यासों से पहले अल्पकाल के लिए, फिर स्थाई रूप से पर्यावरण-निरपेक्ष अवश्य बना सकते हैं।
हम पहले जान चुके हैं कि ध्यान एक मानसिक क्रिया है। इसके निरंतर अभ्यास से अपने मन को पर्यावरण-निरपेक्ष बना कर पर्यावरण के अरुचिकर दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। हमारी साधना में पर्यावरण का प्रतिरोध न हो, तो साधना सहज और आनंद-पूर्ण हो जाती है। इसका सहजतम मार्ग है .."ध्यानम "।
-पवन श्री

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