Monday, March 04, 2013

विचारों का पदार्थीकरण --2

पिछले पोस्ट में हम ने "विचारों के पदार्थीकरण ",विषय पर संवाद प्रारंभ किया था। आइए उसको आगे बढ़ाते हैं। हमने जान लिया है कि हमारे कर्मों के आधार हैं ,हमारे विचार ,और हमारे विचारों का आधार हैं ,हमारी सूचनाएं।हमारी ज्ञानेन्द्रियो  द्वारा अर्जित तथा हमारे नाड़ी -तंत्र द्वारा संगृहीत सूचनाएं ही हमारे संस्कारों का निर्माण करती हैं।यही संस्कार हमारे विचारों के जनक हैं।अक्सर हम सूचनाओं को ज्ञान समझ लेते हैं ज्ञान और सूचना में मौलिक अंतर यह है कि सूचनाएं अर्जित की जाती हैं और ज्ञान घटित होता है।सूचनाएं संस्कारों का निर्माण करती हैं और संस्कार बंधन कारी होते हैं।संस्कार, हमें अपने अनुरूप विचार में पड़ने के लिए बाध्य करते हैं। ज्ञान का कोई संस्कार नहीं बनता ,इस लिए ज्ञान मुक्ति-दाता  है।संस्कार-जन्य  विचारों के अनुरूप कर्म करने वाले तनावो के बंधन को प्राप्त होते हैं और ग्यानानुरूप कर्म करने वाले तनाव-मुक्त आनंद को।  ...........आज के संवाद में ,कुछ नए शब्द प्रयोग में आएँगे।आगे बढ़ने के पहले उन शब्दों को समझ लेना चाहिए। ........
      १.   ज्ञान क्या है ?
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                                  " किसी भी विषय के सन्दर्भ में , क्या ?,क्यों ?,कै से  ?,कहाँ ?,कौन ? कब ? आदि प्रश्नों के ऐसे उत्तर को ज्ञान कहते हैं जिस उत्तर में से फिर कभी किसी प्रश्न का जन्म न हो।"

   २. सूचना क्या है ?
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                                 " इन्द्रिओ द्वारा अर्जित वस्तु को सूचना कहते हैं।"

  ३.संस्कार क्या है ?
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                                    " इन्द्रिओ द्वारा अर्जित सूचनाओं का जो संग्रह हमारे नाडी -तंत्र पर होता है ,एक छाप के रूप में ,वही है संस्कार। इसे स्मृति (मेमोरी ) भी  कहा जा सकता   है "

 ४. बंधन क्या है ?
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                                  " हर वो चीज बंधन है ,जो हमें स्वतंत्र रूप से सोचने और तदनुरूप कर्म करने की हमारी  स्वतंत्रता को बाधित करती है "

 ५. मुक्ति क्या है ?            
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                                "मुक्ति  एक निर्विचार अवस्था है ,जिसमें तभी और वही विचार आते हैं जब और जिसे हम चाहते हैं "
                   
                                हमारे विचारों का आविष्कार हमारे संस्कारों में  तथा उनका परिष्कार हमारी सूचनाओं में होता है । हमारी सूचनाओं में से परिष्कृत हो कर बाहर  निकले हमारे संस्कार जन्य  विचार ही हमारे कर्मों, ,हमारे प्रयासों के आधार बनते हैं । .......................
                                                                         ...जारी ----
                                  
                                                                                               पवन श्री 

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